आओ तुम्हें कहानी में छुपा लेता हूं
एक ही समन्दर के दो हिस्से
जानती हो किसने लिखे हैं इनके किस्से ,
आपस में दिन-रात सौत सा लड़ा करते थे
पर कहीं ना कहीं एक दूजे से मिलने के लिए भी तरसा करते थे |
इनकी रोज़-रोज़ की बातों से
छोटी-छोटी मछलियां परेशान हो जाती थी ,
कई दफा तो सारी की सारी
अपना घर भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाती थी |
दिन-प्रतिदिन इनके नखरों का बोझ
इनके किनारे बसे मासूम से लोग उठाते थे ,
कहीं दिन में ही रात ना हो जाए
इनकी तू-तू मैं-मैं शुरू होने से पहले ही डर के सो जाते थे |
आसमान में उड़ते पंछी भी
अपनी तिरछी आंखें बादलों को दिखाते थे ,
ताने मार-मार कर
काले-काले बादलों को ख़ूब ये रुलाते थे |
उनके ऊपर बैठे भगवान भी
बेबस-लाचारी में अपना माथा हिलाते थे ,
क्या सोच कर बनाई थी हमने ये दुनियां
इंसान तो इंसान , पशु-पक्षी भी हमपर इल्ज़ाम लगाते हैं |



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