बारिश तो आ गई पड़ तुम नहीं.....
सुबह आंख खुली और आंखों के सामने वही मंज़र था
जिसे तुम सबसे ज्यादा चाहती थी ,
उसकी एक-एक बूंद मानो सिर्फ़ तुम्हारे जिस्म को नही
तुम्हारी रूह को छूती थी |
छम-छम करती बूंदें 
और हवा के तेज़ झोंको से झूमते सारे पेड़-पौधे ,
ऐसे लग रहा था जैसे कि ये सब तुम कर रही हो
तुम्हारी मीठी आवाज़ और चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट |
पर सच तो यही था
कि बारिश भी आ गई पर तुम नहीं |
सुनसान सा मेरा कमरा
और उतनी ही तेज इन आंखों से गिरते आंसू ,
मैं किस से लडू , ख़ुद से 
या अपनी दे दू ? 
रह-रह कर तुम्हारी यादें 
तेज़ाब सा दिल को जलाती हैं ,
दीवार पर लगी तुम्हारी तस्वीर 
तुम्हारे ना होने का एहसास दिलाती हैं |
सागर किनारे , तुम्हारा हाथ पकड़े
लहरों से बचते , तुम्हारी आंखों में सूरज को ढलते 
मैंने एक नहीं कई बार अपने लिए प्यार देखा था ,
तुम्हारी छोटी-छोटी बातों से ही तो
मैंने ज़िन्दगी जीने का राज सीखा था |
तुमसे छुप-छुप कर मिलना 
आधी-आधी रात को तुम्हारी आंखों से मैंने
उससे भी खूबसूरत एक चांद देखा था ,
ये दिल की पहली मोहब्बत
और उतने ही सारे लाखों ख्वाब देखा था |
पर आज सब लौट आई 
ये रातें , ये चांद , वो लहरें 
वो यादें और ये बारिश ... पर तुम नहीं 
✍️Sahni Baleshwar


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